Monday, March 14, 2016

पलायन

उजड़ी हुई बस्तियां...लोग अनजाने मिले
मुझको मेंरे गाँव...सब वीराने मिले
दरो दीवार बची थी... कहीं छज्जा न मिले
टूटे कीवाडों में बंद ...तहखाने मिले
चीर कर छत की छाती...निकले हैं पेड़ कहीं
आँगन में झाडियाँ... घर परिंदों के आशियाने मिले
क्रमशः... टीटी

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