चेहरे पर पडी
'झुर्रियाँ'...
उसके बुढ़ापे की
निशानी नहीं...
अनगिनत कहानियों के
'स्मृति चिन्ह' हैं...
जिनमें 'सिमटे' हैं...
'वेदनाओ' के
'अथाह भण्डार'...
'तिल-तिल' मरने के
'किस्से'
और 'दुत्कारे' जाने के
'दंश'...
लूटे-पिटे अधिकार...
जो उसने अपने
'पंगु' व 'व्यथित' मन की
'कालकोठरी' में
'दफ़न' किये हैं...
मुस्कराहट में
उभरती 'लकीरें'...
जो खो गयी हैं
गर्त में...
जहाँ जीवन
पूर्णतः 'अंधकारमय' है...
चहरे पर
बढ़ी दाढ़ी...
जो करती है
नाक़ाम कोशिश...
उसकी हताशा व
बेरोजगारी से मिली
झुर्रियाँ छुपाने का...
२५ साल के
बूढ़े -पिचके चेहरे पर
लिखी सांकेतिक भाषा को
साफ़ साफ़ पढने का
हुनर रखता हूँ
लेकिन उनमें
छिपे वेदनाओं के
अहसास से भी डरता हूँ
'झुर्रियाँ'...
उसके बुढ़ापे की
निशानी नहीं...
अनगिनत कहानियों के
'स्मृति चिन्ह' हैं...
जिनमें 'सिमटे' हैं...
'वेदनाओ' के
'अथाह भण्डार'...
'तिल-तिल' मरने के
'किस्से'
और 'दुत्कारे' जाने के
'दंश'...
लूटे-पिटे अधिकार...
जो उसने अपने
'पंगु' व 'व्यथित' मन की
'कालकोठरी' में
'दफ़न' किये हैं...
मुस्कराहट में
उभरती 'लकीरें'...
जो खो गयी हैं
गर्त में...
जहाँ जीवन
पूर्णतः 'अंधकारमय' है...
चहरे पर
बढ़ी दाढ़ी...
जो करती है
नाक़ाम कोशिश...
उसकी हताशा व
बेरोजगारी से मिली
झुर्रियाँ छुपाने का...
२५ साल के
बूढ़े -पिचके चेहरे पर
लिखी सांकेतिक भाषा को
साफ़ साफ़ पढने का
हुनर रखता हूँ
लेकिन उनमें
छिपे वेदनाओं के
अहसास से भी डरता हूँ