मानव
सृष्टि की सुन्दर रचना
मनु की सम्पदा
जीवों मैं श्रेष्ट
उस परमब्रह्म की महान उपलब्धि है |
मनुज
प्रकृति का विनाश करके
अपने कर्तव्यों से विमुख हो
अपना ही सर्वनाश कर राह है |
मनुष्य
इस निर्मल रचना को मलीन कर
आपस मैं लड़ - लड़ के
अपना जीवन व्यर्थ कर रहा है |
भीषण नर संहार देख
बेबस और असहाय सृष्टि
रो-रो के पुकारती है
हे जीवश्रेष्ट ! तुझे क्या हो गया |
और
कुंठित होते मेरे मन मैं होता
घोर आश्चर्य !
ईश्वर की इस महान कृति पर |
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