आधे - अधूरे
ज़िन्दगी की खुली किताब पर,
जीने की अभिलाषा लिए अक्षर,
अधूरी कविता बनकर रह गए |
जिसे पैदा किया मेरी कलम ने ,
और सराहा मेरे ह्रदय ने ,
वो खुले प्रष्ठों मैं सिमट के रह गए |
मेरे कोमल ह्रदय मैं,
अंकुरित होते शब्दों के बीज,
सब बिखर के रह गए |
अब सुन्न होता मेरा मन,
अनायास देखता रहता है ,
वो प्रष्ट जो आधे अधूरे रह गए |
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