Wednesday, November 24, 2010

और मैं बड़ा हो गया !

यूँ  छोड़ गए मुझे
सारी रात रसातल में जलमग्न

बे आबरू करके मुझको
फिर तुमने शर्मसार किया

और रोंद दिया मुझे
दो पत्थरों के बीच

असहाय और लाचार होकर
कतरा - कतरा हो गया मैं

फिर वो क़यामत कि हद
जब तार से छेदा गया

और फैंक दिया बेदर्दी से
गरम तेल की कढ़ाई में

तब मुझे पता चला कि
मैं बड़ा हो गया !

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