है याद मुझे मेरा बचपन ,
हर चीज़ सुहानी लगती थी |
हम खेल करें जिस आँगन मैं ,
चिड़ियाँ दाना वहीँ चुगती थी ||
जब रंग बिरंगे पंखों को ,
तितलियाँ फैलाया करती थी |
दोडें बच्चे उनके पीछे ,
वो नाच नचाया करती थी ||
बौराई डालों के नीचे,
घर खूब बनाये मिटटी के |
हँस - हँस के बच्चों के संग मैं ,
कोयल भी गाया करती थी ||
जब धूप खिले घर आगन मैं ,
वो डाल ही छाया करती थी |
मुझको परियों के गीत सुना ,
दादी सुलाया करती थी ||
था रंग भरा कितना बचपन,
अब जीवन क्यों नीरस है बना |
आपस मैं लड़ - लड़ के मानव ,
मानव से क्यों दानव है बना ||
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