Tuesday, November 23, 2010

बचपन ( नान छिना : कौस छि कौस हैगोय )

है याद मुझे मेरा बचपन ,
हर चीज़ सुहानी लगती थी |
हम खेल करें जिस आँगन मैं ,
चिड़ियाँ दाना वहीँ चुगती थी ||

जब रंग बिरंगे पंखों को ,
तितलियाँ फैलाया करती थी |
दोडें बच्चे उनके पीछे ,
वो नाच नचाया करती थी ||

बौराई डालों के नीचे,
घर खूब बनाये मिटटी के |
हँस - हँस के बच्चों के संग मैं ,
कोयल भी गाया करती थी ||

जब धूप खिले घर आगन मैं ,
वो डाल ही छाया करती थी |
मुझको परियों के गीत सुना ,
दादी सुलाया करती थी ||

था रंग भरा कितना बचपन,
अब जीवन क्यों नीरस है बना |
आपस मैं लड़ - लड़ के मानव ,
मानव से क्यों दानव है बना ||

No comments:

Post a Comment

विज्ञापन

दिल्ली हाईकोर्ट ने विज्ञापन मे चेहरा नहीँ दिखाने के लिये कहा तो केजरीवाल आजकल पिछवाडा दिखा रहे है!! अब सीधे विज्ञापन पे आता हूँ: नमस्कार...