आवादी के शहर में तन्हाई ढूँढते हैं
दुश्मनों की भीड़ में दोस्तों को ढूँढते हैं
अंदाज़े बयां और है इस बात का मेरे "भास्कर"
इस शहर की मस्ती को बोतल में ढूँढते हैं
किश्मत में अँधेरा है कोई दूर करे कैसे
एक हाथ में दिया है मंजिल को ढूँढते हैं
तन्हाई का आलम है हर रात अँधेरी है
तेरी याद के सहारे दरवाज़ा ढूँढते हैं
समंदर बहुत गहरा है कोई पार करे कैसे
हर शख्स निगाहों से कश्ती को ढूँढते हैं
सपनों में वो आते हैं इस बात का क्या मतलब
हम दिन के उजाले में भी उनको ढूँढते हैं
अब याद करें हमको इस बात से हैरां हैं
जो बात करे मेरी वो शख्स ढूँढते हैं
मत पूछ मेरा क्या है अब हाल तेरे पीछे
हर शख्स के चहरे में भी तुझको ढूँढते हैं
अपनों से ही पाया है गैरों सा साथ हमने
था प्यार जो अपनों में गैरों में ढूँढते हैं
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