Wednesday, November 24, 2010

मैं और मेरी तन्हाई

आवादी के शहर में तन्हाई ढूँढते हैं 
दुश्मनों की भीड़ में दोस्तों को ढूँढते हैं

अंदाज़े बयां और है इस बात का मेरे "भास्कर"
इस शहर की मस्ती को बोतल में ढूँढते हैं

किश्मत में अँधेरा है कोई दूर करे कैसे 
एक हाथ में दिया है  मंजिल को ढूँढते हैं

तन्हाई का आलम है हर रात अँधेरी है
तेरी याद के सहारे दरवाज़ा ढूँढते हैं

समंदर बहुत गहरा है कोई पार करे कैसे
हर शख्स निगाहों से कश्ती को ढूँढते हैं

सपनों में वो आते हैं इस बात का क्या मतलब
हम दिन के उजाले में भी उनको ढूँढते हैं

अब याद करें हमको इस बात से हैरां हैं
जो बात करे मेरी वो शख्स ढूँढते हैं

मत पूछ मेरा क्या है अब हाल तेरे पीछे
हर शख्स के चहरे में भी तुझको ढूँढते हैं

अपनों से ही पाया है गैरों सा साथ हमने
था प्यार जो अपनों में गैरों में ढूँढते हैं 

No comments:

Post a Comment

विज्ञापन

दिल्ली हाईकोर्ट ने विज्ञापन मे चेहरा नहीँ दिखाने के लिये कहा तो केजरीवाल आजकल पिछवाडा दिखा रहे है!! अब सीधे विज्ञापन पे आता हूँ: नमस्कार...