सर्द मौसम मैं...
यूँ सिमट जाना...
एक दूसरे की बाँहों मैं..
कंपित होंटों से...
छू लेना उसको...
फिर उसका ...
मेरे आगोश में...
यूँ लिपटना ...
जैसे वादा ले रही हो...
कभी नहीं अलग होने का...
महसूस करना..
गर्म साँसे उसकी...
फिर समा जाना उसमें...
मेरा शब भर के लिए...
और भूल जाना मेरा ...
भूत, भविष्य, वर्तमान...
निकाल पड़ना ...
सपनों की सैर पर...
और दूर हो जाना मुझसे...
घने स्याह अंधकार का ...
खुद को पाना मेरा ...
शांति के अथाह ब्रह्माण्ड मैं...
अचानक सुनाई देना...
चिड़ियों का चहचहाना...
मंदिर की घंटियाँ...
और मस्जिद की अज़ान...
फिर जुदा कर देना इनका हमें...
दिन भर के लिए...
Tuesday, December 14, 2010
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तीर वो जो दुश्मन की कमान के थे पर तरकश में एक मेहरबान के थे कोशिशें बहुत हुई हमको गिराने की ख़ाब अपने भी ऊँचें आसमान के थे ठोकरें खाकर...
jahapana tussi gr8 ho......tohfa kabool karo....
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