'सूखा'...
'भुखमरी'...
'बेहाल जिंदगी'...
'गरीबी' में...
ग़र थी तो...
'दुआ' थी...
'लबों' पे...
'फ़कीरी' में...
फिर 'आँधी' थी...
'तूफ़ान' था...
'आग' थी...
'बिजली' और 'चिंगारी' में...
'जलमग्न'...
'रसातल' में कण-कण---
'विलुप्त'....
सारी 'कायनाथ' हुई...
न 'काया'... न 'माया'...
विलीन 'प्राण'...
कुछ यूँ...
'गरीबों' की 'दुआ क़बूल' हुई...
Sunday, December 19, 2010
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दिल्ली हाईकोर्ट ने विज्ञापन मे चेहरा नहीँ दिखाने के लिये कहा तो केजरीवाल आजकल पिछवाडा दिखा रहे है!! अब सीधे विज्ञापन पे आता हूँ: नमस्कार...
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चेहरे पर पडी 'झुर्रियाँ'... उसके बुढ़ापे की निशानी नहीं... अनगिनत कहानियों के 'स्मृति चिन्ह' हैं... जिनमें 'सिमटे...
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खाली यूं ही न...बबाल कर खुद से भी कभी... सवाल कर अपना दुश्मन ...खुद ही न बन बात कर ज़रा... जुबां सम्भाल कर तू!!...दलों के दलदल मे न...
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तीर वो जो दुश्मन की कमान के थे पर तरकश में एक मेहरबान के थे कोशिशें बहुत हुई हमको गिराने की ख़ाब अपने भी ऊँचें आसमान के थे ठोकरें खाकर...
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