मौन...
अकेला...
अविरल...
अनंत पथ पर...
विकल शून्य में...
भटकता...
खोजता ज्योति तम में...
करता अभिसार नभ पर...
असंख्य नक्षत्र...
अभिमुख...
करते अभिनन्दन...
रंगीले स्वप्न का संसार लेकर...
लेकर गर्व मैं...
अपनी विभा का...
मनुज हूँ...
ढो रहा व्यथा का भार लेकर...
कली की पंखडी पर...
ओस की बूँदे नहीं मैं...
दबा तूफ़ान हूँ...
प्रलय का क्षुब्ध पारावार लेकर...
नि: शब्द...
खद्योत सा...
व्योम पटल पर...
धर्म की हूंकार लेकर...
Friday, December 17, 2010
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दिल्ली हाईकोर्ट ने विज्ञापन मे चेहरा नहीँ दिखाने के लिये कहा तो केजरीवाल आजकल पिछवाडा दिखा रहे है!! अब सीधे विज्ञापन पे आता हूँ: नमस्कार...
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चेहरे पर पडी 'झुर्रियाँ'... उसके बुढ़ापे की निशानी नहीं... अनगिनत कहानियों के 'स्मृति चिन्ह' हैं... जिनमें 'सिमटे...
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खाली यूं ही न...बबाल कर खुद से भी कभी... सवाल कर अपना दुश्मन ...खुद ही न बन बात कर ज़रा... जुबां सम्भाल कर तू!!...दलों के दलदल मे न...
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तीर वो जो दुश्मन की कमान के थे पर तरकश में एक मेहरबान के थे कोशिशें बहुत हुई हमको गिराने की ख़ाब अपने भी ऊँचें आसमान के थे ठोकरें खाकर...
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