Friday, December 24, 2010

हाल-ए-दिल

"फ़टे चीथडों" सी ज़िंदगी... ये "शिशिर-पौष"...
तेरा "सौदाई" हूं...अब मुझको "दश्त--तलब" कहाँ...

है "कौन" समेटेगा...जो "उफ़ताद" में मुझको...  
"भंगुर" हूं...सिमट जाना मेरी "फ़ितरत" में कहाँ...


"वहशत" रही ना...न "रंज-ओ-ग़म" मुझको...
"पत्थर" हूँ...मेरे पास मेरा "ज़िगर" कहाँ... 


यूं तो "लुट" जाते हैं..."नाका-ए-दरिया" में सभी...
जो बक्श दे "महसूल"...वो तेरा "शहर" कहाँ...


यही "मामूल" है...रहता हूँ दर-बदर "भास्कर"...         
दो घडी भर को "सुकूँ" दे....है वो "पहर" कहाँ...  


१. सौदाई= पागल,  २. दश्त--तलब = इच्छा का जंगल, ३. उफ़ताद= अचानक आई हुई कोई विपत्ति, ४.  भंगुर= बिखरने वाली वस्तु, ५. फ़ितरत= आदत ६. वहशत= घबराहट, ७. रंज-ओ-ग़म= दुःख का आभास, ८. नाका= चुंगी ९. महसूल= चुंगी पर वसूला जाने वाला टैक्स, १०. मामूल= दिनचर्या, ११. सुकूँ= आराम, १२. पहर = समय

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