Wednesday, December 29, 2010

"क्षणिकायें"


"होड़ "

'सिसकियाँ' फूट पड़ी...
'होंठों' से...
हुवे 'रक्त वर्ण'...
'स्याह नयन'...
'रुंधा गला'...
'हिचकियाँ' बंध गयी...
'ढुलकते अश्क'...
'गालों' पर...
मची 'होड़...
एक दूसरे से... 
आगे निकल जाने की...

“अस्तित्व”

कहाँ है 'सुख'...
उसके 'भाग्य' में...
'घर आँगन'…
'करूणा' बरसाने का...
वो तो 'मुक्त'...
'घुमक्कड़'...
'मेघ' सा...
'अम्बर' पर...
'भटकता'...
बन-बन, पर्वत शिखर...
यूँ ही 'खो' देता...
अपना 'अस्तित्व'...

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