ढाई आँखर
प्रेम शब्द कि उत्पत्ति इस सृष्टि की उत्पत्ति के साथ हुई क्योकि इसके बिना ना तो जीवन संभव है नहीं कोई वस्तु मात्र | इसके बिना पूरे ब्रम्हांड की कल्पना मात्र भी संभव नहीं | हमारे शास्त्रों में इसका उल्लेख मात्र ही नहीं इसका महत्व भी बताया है | जीवन को बनाये रखने के लिए प्रेम होना आवश्यक है , ये केवल प्राणी मात्र के बीच ही नहीं अपितु संसार की प्रत्येक वस्तु के बीच संभव है | यदि मनुष्य और हवा के बीच प्रेम नहीं होगा तो मनुष्य का जीवन दुर्लभ हो जायेगा अतः मनुष्य और हवा के बीच प्रेम है | हमारे ब्रह्माण्ड में प्रत्येक वस्तु सूक्ष्म कणों से मिलके बनी है, इन कणों में प्रेम नहीं तो और क्या है, यही प्रेम इनको बाँधे रखता है | यदि इनमे प्रेम नहीं होगा तो किसी भी वस्तु का कोई अस्तित्व ही नहीं होगा |
आधुनिक युग में मनुष्य ने प्रेम को अपने भोग विलास तक सीमित कर इसके महत्व को नहीं समझा है | उसके लिए प्रेम केवल शारीरिक सुख प्राप्ति ही रह गया है |
मनुष्य का जीवन केवल भोग विलास तक सीमित नहीं है | भोग विलास तो मनुष्य की उम्र के साथ समाप्त हो जायेगा परन्तु सच्चा प्रेम मनुष्य को सामान बनाये रखता है | कभी नहीं समाप्त होने वाली इस अमूल्य निधि को मनुष्य केवल पाने की इच्छा मात्र रखता है | यदि मनुष्य वेदों का अध्ययन कर आत्मा चिंतन करे और इसके सही अर्थ को समझे तो उस परम शक्ति (परमआनंद) को प्राप्त करने के मार्ग को खोज पायेगा |
मोक्ष ही प्रेम की सही उत्पत्ति का केंद्र है | संसार की माया मोह में ना पडके मनुष्य सदमार्ग पर चले तो वह प्रेम का सही अर्थ जान पायेगा तथा देववाणी में छुपे सारतत्व को ग्रहण कर सकेगा |
" प्रेम केवल कामाग्नि को शांत करने का साधन नहीं अपितु मानसिक व आत्मिक शांति का परिचायक है .........भास्कर आनंद "
"प्रेम मोक्ष का द्वार है जहाँ मनुष्य उस परम अनुभूति का अनुभव करता है ...........भास्कर आनंद "
Wednesday, December 8, 2010
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fantastic.....only highlighted quotes say all about the article..
ReplyDeleteSir, kya likha hai dil ko chhu gaya ye to
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