Wednesday, December 22, 2010

"आलू" का ख़त "प्याज़" के नाम

स्थान: रेडी चौक, शनि बाज़ार मंडी
समय: बुरा
काल: अकाल

आदरणीय प्याज महोदय,
नमस्कार !
सुना है आजकल सातवें आसमान पे हो | आपके तो दर्शन ही दुर्लभ हो गए | कहाँ हम कभी एक ही रेडी पर रहते थे , तुम्हारे कुछ बच्चे हमारेसाथ और हमारे कुछ बच्चे तुम्हारे साथ शाम को चले जाया करते थे | हमारी जोड़ी को लोग एक ही थैली के चट्टे-बट्टे कहते थे |
भय्या तुम्हारे तो अब दिन सुधर गए !  सुना है अब तो कला बाजारी के धंधे में भी अपने पैर जमा लिए हैं |
गोभी चाचा और कद्दू चची बता रहे थे की तुम्हारे लिए लोग सुनार की दुकानों में खड़े रहते हैं | तुम्हारी मालाएं और अंगूठियाँ बाज़ार में धड़ल्ले से बिक रही हैं | तुम्हारी तो हमेशा सबको रुलाने की आदत रही है| भिन्डी ने रो रो के बुरा हाल किया है , तुमरे वियोग में मुर्गी-अंडे सब बेहाल है...
गलतियों पर ध्यान न देना | तुम्हारा सफर कैसा रहा लिखना| उम्मीद करता हूँ की तुम जल्द ही अपने पुराने घर "रेडी" पर वापस आओगे |
अंत में...
यूँ तो... कभी हम साथ-साथ थे
एक दूसरे के लिए... दिल में ज़ज्बात थे
सुना है...अब नज़र सातवें आसमान है
कभी... हम दोनों के एक से हालत थे

लिखने को और भी बहुत कुछ है.... बाँकी  सब तुम्हारे घर वापस आने पर .....
तुम्हारा अभागा मित्र
आलू

1 comment:

  1. hahahah Bhaskar da bhote badi ho.....g.f ki shoping karana pyaaz khareedne se sasta ho gaya hai bhai ....hahahahaha great work,,,,keep it up :)

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