Tuesday, December 8, 2015

कहानी:

मनुष्य के साथ यही तो तकलीफ है। जब जीवन की बात की जाये तो कहानी लगती है और जब कहानी सुनाई जाये तो लगता है इसमें कहानी जैसा तो कुछ भी नहीं। हम यही तो देखते हैं अपने आसपास सबकुछ वही कहानी जैसा बिलकुल। फिर भी कहानी तो कहानी ही है क्योकि जब मैंने कहा नी है तो पता कैसे चलेगा की क्या कहा नि है जो अबतक कहानी है। अनुभव या कहानी जो कुछ भी है, यही है। बाँकी सब ऐसा ही ठैरा!!
आज घर की सफाई करने का मन हुआ तो सबसे पहले अपने कमरे की ओर ध्यान गया। नीचे कार्पेट जो अब तक 10 किलो धूल खा चूका था आज हलका महसूस कर रहा होगा। led जो जाने अनजाने कई दिनों से अपने ऊपर एक बोझ लिए खड़ा था आज उसे भी मुक्ति मिली यही ख़ुशी कोने पे पडा कंप्यूटर भी मना रहा था जो लेपटोप के आजाने के बाद उपेक्षित था।
नीचे की सफाई करने के बाद ऊपर सेल्फ पर पड़े सामान की सफाई करनी थी जैसे ही ऊपर सेल्फ पर।गया तो मुझे मेरा पुराना संदूक मिला । उसे खोलते ही में अपनी पुरानी यादों में वापस लौट गया जहाँ में अपना सबकुछ छोड़ आया था।
To be continued...

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