Tuesday, December 8, 2015

कन्फ्यूजन

बहुत बड़ा कन्फ्यूजन है साब!! कोई इनकी दुविधा को दूर करे!!
बसि कुसंग चाहत कुसल, कह रहीम जिय सोस।
महिमा घटि समुद्र की, रावण बस्‍यो पड़ोस।।
(रहीम कहते हैं- बुरी संगत में रहते हुए कुशलता की कामना करने वाले के लिए अफसोस होता है. रावण के पड़ोस में रहने से तो समुद्र की महिमा भी घट गई थी.
जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग।
चन्दन विष व्यापत नहीं, लपटे रहत भुजंग॥
(रहीम कहते हैं- उत्तम प्रकृति वाले व्यक्‍ति‍ का कुसंगति भी कुछ नहीं बिगाड़ सकती. वैसे ही जैसे, चंदन के पेड़ से सांप के लिपटे रहने के बावजूद उस पर कोई फर्क नहीं पड़ता.)
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलया कोये।
जो मन खोजा आपना, तो मुझसे बुरा न कोये॥
कबीर कहते हैं कि क्यों व्यर्थ में हम किसी दूसरे में दोष ढूँढने लगते हैं? वे कहते हैं कि हमें अपने अंदर झाँक कर देखना चाहिये। यदि कहीं कोई कमी है तो वो "मुझमें" है। मैं किसी दूसरे व्यक्ति में गलतियाँ क्यों ढूँढू? यदि मैं किसी के साथ निभा नहीं पा रहा हूँ तो बदलाव मुझे करना है।

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