Tuesday, December 8, 2015

सफ़र

कुछ दिन पहले बम्बई नाथ स्वामी जी की कृपा से अपने गांव जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। करीब साढ़े नौ बजे अपने घर से निकल कर मोहन नगर तक शेयरिंग ऑटो और फिर आनंद विहार तक सीधे ऑटो न करके वैशाली मेट्रो तक टैम्पू और आनंद विहार तक मेट्रो में सफ़र किया हालांकि ये पूरी यात्रा अगर अपना व्हीकल हो तो 20 मिनट से अधिक नहीं लेकिन मैंने टुकड़ों में यात्रा की तो मुझे 50 मिनट से अधिक का समय लग गया । मेरे पास सामान कुछ अधिक नहीं फिर भी एक पिट्ठू बैग एक कोट जो कवर के साथ और खाने का टिफिन था।
ूरे 100 रु खर्च करने के बाद अन्ततः आनंद विहार स्टेशन पहुँच गया। वहाँ का नजारा देखने के बाद लगा की गलती से कही किसी मेले में तो नहीं पहुच गया, काफी कुछ जद्दोजहद और 30_35 गाड़ियों से उतरने के बाद वापस घर जाने का मन बनाया फिर सोचा अभी तो साढे ग्यारा ही बजे है कुछ और प्रयास किया जाय ।
क्योंकि स्टेशन के अंदर बहुत अधिक भीड़ थी इसलिए साँस लेना भी दूभर हो रहा था ऊपर से कई लोगों से पूछने के पश्चात् भी ये पता नहीं चल पा रहा था की रामनगर को कौन सी गाड़ी जायेगी और जायेगी भी या नहीं, अब तो मेरा आत्मविस्वास भी कुछ डिगने लगा था कुछ ही दूरी पर हल्द्वानी की 10-12 गाड़ियां खड़ी थी जो खचाखच भरी हुई थी सोचा किसी भी गाड़ी में जगह मिल जाय तो हल्द्वानी तक ही निकल लिया जाय पहाड़ को जाने वाली गाड़ियां छोटी होती है इसलिए अधिक भरी प्रतीत हो रही थी ।
अंततः भारी क़दमों से धीरे धीरे स्टेशन से बाहर की ओर चलने लगा, जैसे जैसे स्टेशन पीछे छूट रहा था मन में घोर निराशा के बादल उमड़ रहे थे, करीब एक किलोमीटर बाहर आजाने के पश्चात भी भीड़ का सिलसिला कुछ कम नहीं हुआ लोगों को जो भी खाली गाड़ी अंदर आती दिखी बस उसमे चढ़ और उतार रहे थे जब तक की उनको उनके गन्तब्य की और जाने वाली सही गाड़ी नहीं मिल जाती...ये सिलसिला जारी था।
कुछ दूरी तय करने पर एक भीड़ दिखी जो मेन रोड से लगभग 500 मीटर अंदर थी बाहर जाते हुवे मैं कुछ देरी के लिए सुस्ताने के लिए रुक गया मेरी घडी उस समय 12 :15 बजा रही थी उनकी बातें सुनकर लगा की वो भी मेरी तरह निराश व् हताश हैं ..." नहे जोंल यार घर क्वे ले गाड़ी रामनगर वाली नैछ्...आगलगाओ यार! गोरु बकार जस हम ले रोजे यास राय...कुकुरा का पोथिल काधिन यथां सार काधिने उथाँ" उनमे से एक बोला।
तुमुल काँ जाणो? मेरी आवाज ने उनको मेरी ओर देखने को बाधित किया। उनमे से एक बोला "रामनगर"... तुमुल? मैंने कहा ...मैंल लै। ....
To be continued...

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